सदर खुद बांट रहा बीमारी, लेबर रूम में एक ही बेड पर दो गर्भवती का हो रहा इलाज
सदर खुद बांट रहा बीमारी, लेबर रूम में एक ही बेड पर दो गर्भवती का हो रहा इलाज
राज्य के सबसे बेहतर सरकारी अस्पतालों में सदर अस्पताल रांची का नाम शुमार है। यहां मरीजों को कई सुविधाएं देने का दावा किया जाता है। लेकिन, हकीकत इसके ठीक उलट है। अस्पताल खुद ही बीमारी बांट रहा है। सदर अस्पताल के लेबर रूम में बेड की कमी है। इस कारण डिलीवरी के लिए आईं दो गर्भवती महिलाओं को एक ही बेड पर भर्ती किया जाता है। दो गर्भवती महिलाएं एक ही बेड पर लेट कर प्रसव का इंतजार करती रहती हैं। ऐसा पिछले कई महीनों से चल रहा है। अस्पताल की यह लापरवाही मां के साथ-साथ पेट में पल रहे बच्चे के लिए भी बेहद नुकसानदेह है। विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि गर्भधारण के बाद प्रसव के अंतराल में महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। ऐसे में दो गर्भवती महिला को एक ही बेड पर भर्ती करने से उनमें संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। उधर, सिविल सर्जन का कहना है कि सदर अस्पताल में लगातार सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं। हर विभागों में जरूरत के हिसाब से बेड भी बढ़ाए जा रहे हैं। जहां तक लेबर रूम की बात है, यहां भी बेड बढ़ाए जाएंगे। लेकिन, सवाल यह कि पिछले कई महीने से अस्पताल के लेबर रूम में इसी व्यवस्था में गर्भवती महिलाओं का इलाज चल रहा है। इस पर सिविल सर्जन अब तक क्यों गंभीर नहीं हुए? लेबर रूम में बेड क्यों नहीं बढ़ाए गए? या अस्पताल के किसी और बड़े कमरे में लेबर रूम को शिफ्ट कर बेड की संख्या बढ़ाने पर काम क्यों नहीं किया गया? सदर में रोजाना औसतन 38 डिलीवरी होती है, सुविधा न के बराबर रोजाना सदर अस्पताल रांची में औसतन 38 डिलीवरी होती है। यहां मौजूद महिला चिकित्सक का सिजेरियन से ज्यादा नॉर्मल डिलीवरी कराने पर जोर होता है। यही कारण है कि हर दिन अस्पताल में 20 से ज्यादा गर्भवती महिला पहुंचती हैं। जबकि, प्राइवेट अस्पतालों के आंकडे देखें तो रोजाना 6 सिजेरियन और 1 नॉर्मल डिलीवरी होती है। इनके अलावा सदर अस्पताल में सिजेरियन व नॉर्मल डिलीवरी पूरी तरह नि:शुल्क है। जबकि, निजी अस्पतालों में डिलीवरी का खर्च लाखों में आता है। इस कारण रांची जिले व आसपास से गरीब घरों की ज्यादातर गर्भवती महिलाएं यहां डिलीवरी के लिए पहुंचती हैं। परिजनों ने कहा- जल्द बेड की संख्या बढ़े सदर अस्पताल के पहले तल्ले पर स्थित लेबर रूम के बाहर खड़ी कुछ प्रसूता के परिजनों से जब बात की गई, तो सभी ने एक सुर में कहा- प्रबंधन को सबसे पहले बेड की संख्या बढ़ानी चाहिए। एक तरफ सदर अस्पताल को सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल बताया जा रहा है और दूसरी ओर लेबर रूम में एक बेड पर दो गर्भवतियों को जगह दी जा रही है। क्या सदर अस्पताल में अत्यधिक पेशेंट लोड के कारण यह परेशानी हो रही है? इस पर परिजनों ने कहा कि इतनी भीड़ इसलिए यहां होती है, क्योंकि यहां डिलीवरी नि:शुल्क है। यहां डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी कराने के लिए हरसंभव प्रयास करती हैं। प्रबंधन को जल्द से जल्द अस्पताल में बेड की संख्या बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। एक ही बेड पर दो गर्भवती को भर्ती करने से होता है संक्रमण का खतरा ये है अस्पताल का लेबर रूम। यहां एक ही बेड पर दो गर्भवती महिलाओं को किया जाता है भर्ती।
राज्य के सबसे बेहतर सरकारी अस्पतालों में सदर अस्पताल रांची का नाम शुमार है। यहां मरीजों को कई सुविधाएं देने का दावा किया जाता है। लेकिन, हकीकत इसके ठीक उलट है। अस्पताल खुद ही बीमारी बांट रहा है। सदर अस्पताल के लेबर रूम में बेड की कमी है। इस कारण डिलीवरी के लिए आईं दो गर्भवती महिलाओं को एक ही बेड पर भर्ती किया जाता है। दो गर्भवती महिलाएं एक ही बेड पर लेट कर प्रसव का इंतजार करती रहती हैं। ऐसा पिछले कई महीनों से चल रहा है। अस्पताल की यह लापरवाही मां के साथ-साथ पेट में पल रहे बच्चे के लिए भी बेहद नुकसानदेह है। विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि गर्भधारण के बाद प्रसव के अंतराल में महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। ऐसे में दो गर्भवती महिला को एक ही बेड पर भर्ती करने से उनमें संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। उधर, सिविल सर्जन का कहना है कि सदर अस्पताल में लगातार सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं। हर विभागों में जरूरत के हिसाब से बेड भी बढ़ाए जा रहे हैं। जहां तक लेबर रूम की बात है, यहां भी बेड बढ़ाए जाएंगे। लेकिन, सवाल यह कि पिछले कई महीने से अस्पताल के लेबर रूम में इसी व्यवस्था में गर्भवती महिलाओं का इलाज चल रहा है। इस पर सिविल सर्जन अब तक क्यों गंभीर नहीं हुए? लेबर रूम में बेड क्यों नहीं बढ़ाए गए? या अस्पताल के किसी और बड़े कमरे में लेबर रूम को शिफ्ट कर बेड की संख्या बढ़ाने पर काम क्यों नहीं किया गया? सदर में रोजाना औसतन 38 डिलीवरी होती है, सुविधा न के बराबर रोजाना सदर अस्पताल रांची में औसतन 38 डिलीवरी होती है। यहां मौजूद महिला चिकित्सक का सिजेरियन से ज्यादा नॉर्मल डिलीवरी कराने पर जोर होता है। यही कारण है कि हर दिन अस्पताल में 20 से ज्यादा गर्भवती महिला पहुंचती हैं। जबकि, प्राइवेट अस्पतालों के आंकडे देखें तो रोजाना 6 सिजेरियन और 1 नॉर्मल डिलीवरी होती है। इनके अलावा सदर अस्पताल में सिजेरियन व नॉर्मल डिलीवरी पूरी तरह नि:शुल्क है। जबकि, निजी अस्पतालों में डिलीवरी का खर्च लाखों में आता है। इस कारण रांची जिले व आसपास से गरीब घरों की ज्यादातर गर्भवती महिलाएं यहां डिलीवरी के लिए पहुंचती हैं। परिजनों ने कहा- जल्द बेड की संख्या बढ़े सदर अस्पताल के पहले तल्ले पर स्थित लेबर रूम के बाहर खड़ी कुछ प्रसूता के परिजनों से जब बात की गई, तो सभी ने एक सुर में कहा- प्रबंधन को सबसे पहले बेड की संख्या बढ़ानी चाहिए। एक तरफ सदर अस्पताल को सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल बताया जा रहा है और दूसरी ओर लेबर रूम में एक बेड पर दो गर्भवतियों को जगह दी जा रही है। क्या सदर अस्पताल में अत्यधिक पेशेंट लोड के कारण यह परेशानी हो रही है? इस पर परिजनों ने कहा कि इतनी भीड़ इसलिए यहां होती है, क्योंकि यहां डिलीवरी नि:शुल्क है। यहां डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी कराने के लिए हरसंभव प्रयास करती हैं। प्रबंधन को जल्द से जल्द अस्पताल में बेड की संख्या बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। एक ही बेड पर दो गर्भवती को भर्ती करने से होता है संक्रमण का खतरा ये है अस्पताल का लेबर रूम। यहां एक ही बेड पर दो गर्भवती महिलाओं को किया जाता है भर्ती।